बस यूं ही… बस यूं है मन में विचार आया कि बहुत सालों से बहुत सारी पीड़ाएँ भीतर दबा रखी हैं, अब सही समय उन्हें शब्दों के माध्यम से सबको बता देने का… “अरे, ये कैंसर वाला कोई नहीं बचता, मां किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी। सुबह-सुबह पड़ोस में रहने वाली अंजू की मौत के बाद मां फ़ोन पर सबको बता रही हैं। उनकी यह धारणा कि कैंसर मतलब मरना ही है, शायद आसपास हुई कैंसर के मरीजों की मौत से बनी हुई है। उनकी क्या यह एक आम धारणा बनी हुई है? C is followed by D, मतलब कैंसर हो गया तो मरना निश्चित है। मौत तो सबकी होनी ही है, मगर पिछले 15 सालों में जो बदलाव कैंसर के इलाज़ को लेकर आए हैं, उनसे बहुत सारे कैंसर के मरीजों की ज़िंदगी जीने के साल बड़े हैं, बल्कि बहुत सारे कैंसर जो शुरुआती स्टेज में पकड़ में आ जाते हैं उनका पूरी तरह से इलाज़ भी संभव हो गया है और दूर क्या जाना… पिछले दस साल से तो मैं ही जी रहा हूँ। 2014 में पहली बार मुझे कैंसर डायग्नोज़ हुआ तो, मुझे जो टेंशन थी वह यह थी कि मुझे इलाज़ कहाँ कराना है… मेडिक्लेम पॉलिसी ने आर्थिक झटके से भी बचा लिया वरना यह भी किसी झटके से कम नहीं होता। 4 से 5 लाख का महंगा इलाज़ बिना मेडिक्लेम के बहुत कठिन है… इलाज़ हो गया सब ठीक चलता रहा… 2021 में फिर से कैंसर लौट आया, मार्च 2021 कोरोना की लहर उफान पर और इलाज़ शुरू, दोहरी परीक्षा भी पास कर ली और 2023 के अंत तक जब सारे PET स्कैन की रिपोर्ट ठीक आई तो राहत की सांस ली। मुझे लगा कि अपनी इस परीक्षा के सफ़र को लिखना चाहिए, किसी को पढ़ कर शायद कुछ सवालों के जवाब मिल सकें। इसी सोच के साथ इस डायरी को लिख रहा हूँ।” कैंसर के प्रति फैली कुछ ग़लत धारणाएँ, उनसे पैदा होता डर, मानसिक तनाव और शरीर और मन की बेचैनी जिसे केवल कैंसर का मरीज़ ही जानता है। ऐसे कठिन समय में आस पास के लोगों का सपोर्ट बहुत अच्छा रोल निभा सकता है।
कैंसर सर्वाइवर की डायरी
बस यूं ही… बस यूं है मन में विचार आया कि बहुत सालों से बहुत सारी पीड़ाएँ भीतर दबा रखी हैं, अब सही समय उन्हें शब्दों के माध्यम से सबको बता देने का… “अरे, ये कैंसर वाला कोई नहीं बचता, मां किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी। सुबह-सुबह पड़ोस में रहने वाली अंजू की मौत के बाद मां फ़ोन पर सबको बता रही हैं। उनकी यह धारणा कि कैंसर मतलब मरना ही है, शायद आसपास हुई कैंसर के मरीजों की मौत से बनी हुई है। उनकी क्या यह एक आम धारणा बनी हुई है? C is followed by D, मतलब कैंसर हो गया तो मरना निश्चित है। मौत तो सबकी होनी ही है, मगर पिछले 15 सालों में जो बदलाव कैंसर के इलाज़ को लेकर आए हैं, उनसे बहुत सारे कैंसर के मरीजों की ज़िंदगी जीने के साल बड़े हैं, बल्कि बहुत सारे कैंसर जो शुरुआती स्टेज में पकड़ में आ जाते हैं उनका पूरी तरह से इलाज़ भी संभव हो गया है और दूर क्या जाना… पिछले दस साल से तो मैं ही जी रहा हूँ। 2014 में पहली बार मुझे कैंसर डायग्नोज़ हुआ तो, मुझे जो टेंशन थी वह यह थी कि मुझे इलाज़ कहाँ कराना है… मेडिक्लेम पॉलिसी ने आर्थिक झटके से भी बचा लिया वरना यह भी किसी झटके से कम नहीं होता। 4 से 5 लाख का महंगा इलाज़ बिना मेडिक्लेम के बहुत कठिन है… इलाज़ हो गया सब ठीक चलता रहा… 2021 में फिर से कैंसर लौट आया, मार्च 2021 कोरोना की लहर उफान पर और इलाज़ शुरू, दोहरी परीक्षा भी पास कर ली और 2023 के अंत तक जब सारे PET स्कैन की रिपोर्ट ठीक आई तो राहत की सांस ली। मुझे लगा कि अपनी इस परीक्षा के सफ़र को लिखना चाहिए, किसी को पढ़ कर शायद कुछ सवालों के जवाब मिल सकें। इसी सोच के साथ इस डायरी को लिख रहा हूँ।” कैंसर के प्रति फैली कुछ ग़लत धारणाएँ, उनसे पैदा होता डर, मानसिक तनाव और शरीर और मन की बेचैनी जिसे केवल कैंसर का मरीज़ ही जानता है। ऐसे कठिन समय में आस पास के लोगों का सपोर्ट बहुत अच्छा रोल निभा सकता है।
₹299.00
Related products
-
Non-Fiction
Bio Diversity as Reflected on the Ramappa Temple Complex in Warangal District
₹399.00 Add to basketRated 0 out of 5
Reviews
There are no reviews yet.